बिहार में बच्चों के कुपोषण और कम वजन की समस्या दिन प्रति-दिन बढ़ती जा रही है। आंकड़े बतातेत हैं कि यहां 44 फीसदी बच्चे अंडरवेट होते हैं यानी जिनका वजन मानक से बेहद कम होता है। दुनिया के सबसे गरीब देशों में यूथोपिया, दक्षिणी सूडान और यूट्रोपिया से भी ज्यादा यहां कुपोषण है।
Read More Bihar News in Hindi
इन देशों में आंकड़ा 40 फीसदी के आसपास है। 20 क्षेत्रों में बिहार के बुरे हालात हैं। यूनिफेस के पार्टनरशिप के साथ एएन सिन्हा इंस्च्यूट के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में डेज ने नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे फ़ॉर के आंकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा कि 20 ऐसे प्वाइंट हैं जो इंडिकेट करते हैं कि बिहार को काफी काम करना शेष है। कम वजन, कम वृद्धि वाले बच्चे, स्वच्छता, कम उम्र में बच्चियों की शादी, जनसंख्या वृद्धि दर, मातृत्व देखभाल, महिलाओं की नकदी कमाई मंच शून्यता, साक्षरता दर में महिलाओं का बुरा हाल, बाल श्रम सहित ये सारे बिंदु बताते हैं की तस्वीर सही नहीं है। 40 फीसदी बच्चियों का कम उम्र में शादी हो जा रही है। केवल 10 फीसदी बिहार की महिलाएं कमाती है। उनका 50 फीसदी से कम साक्षरता का दर है।
Read More Patna News in Hindi
इन सबके बीच तस्वीर कुछ अच्छी भी है। पिछले दस सालों में बालिका शिक्षा में बेहतर काम हुआ है। जहां 2001 में 10 से 14 साल उम्र की 50 फीसदी बालिकाएं साक्षर नहीं थी । वह आंकड़ा अब 15 फीसदी पर आ गया है। एनएफएचएस-3 के आंकड़े में टीकाकरण केवल 36 फीसदी बच्चों का लगता था वहीं एनएफएचएस -4 में अब 62 फीसदी हो गया है। संस्थागत प्रसव में भी बिहार आगे बढ़ा है। उन्होंने यूपीए-2 एमडीएस बजट कटौती को भी सरकार का गैर जिम्मेवार बताया।