दरभंगा – ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय प्रशासन ने 44 वर्षो से बंद पड़े इंग्लैंड से मंगाए 82 साल पुराने दरभंगा राज घराने की ऐतिहासिक लिफ्ट को फिर से अपने रूप में चालू किया।
1934 के भूकंप के बाद महाराजा कामेश्वर सिंह ने 1806 में निर्मित राज सचिवालय के क्षतिग्रस्त हिस्सों का न केवल मरम्मत कराया, बल्कि उसका विस्तारीकरण भी किया। एक मंजिला पुराने सचिवालय के पूर्व दो मंजिले मंत्रालय का निर्माण कराया गया। जिसमें मुख्य प्रबंधक समेत कई अधिकारियों के आधुनिक सुविधायुक्त कक्ष और सभागार बनाये गये। 1938 में निर्मित इस एक्सटेंशन भवन में बिजली की रोशनी के साथ-साथ बिजली से चलनेवाले उपकरण भी लगाये गये। इसके लिए खास तौर से इंग्लैंड की कंपनी R.A.Evans Ltd. Lift Makers,. England की कंपनी से लिफ्ट खरीदा गया।
राज पावर हाउस से वितरित डीसी करेंट से चलनेवाली इस लिफ्ट की क्षमता चार लोगों को एक साथ दूसरे तले पर ले जाने की थी। 1938 से 1975-76 तक इसका उपयोग किया जाता रहा। 1976 में एक ओर जहां यह मिथिला विश्वविद्यालय का मुख्य प्रशासनिक भवन बना वहीं दूसरी ओर सरकारी आदेश पर इस परिसर में डीसी करेंट का वितरण बंद कर दिया गया। नये-नये परिसर में आये विश्वविद्यालय प्रशासन ने डीसी करेंट से चलनेवाले पंखे और बल्ब जैसे आवश्यक उपकरणों को तो एसी करेंट में बदला, लेकिन लिफ्ट, एसी, गीजर जैसे कई उपकरणों को एसी में नहीं बदले जाने से वो अनुपयोगी हो गये।
उपयोग में नहीं रहने के कारण इनकी देखभाल भी ठीक से नहीं हुई। कुछ गायब हो गए, कुछ जर्जर होकर नष्ट हो गये। जो कुछ भी बचा हुआ है उसके प्रति विश्वविद्यालय प्रशासन गंभीरता दिखाते हुए उन्हें संरक्षित करने का काम शुरु किया है और करीब 82 साल बाद एक बार फिर 1938 में लगी लिफ्ट एक बार फिर नये एसी मोटर के साथ सेवा देने को तैयार हो चुका है। बिहार के इस सबसे पुराने लिफ्ट के संरक्षण से न केवल विश्वविद्यालय का मान बढेगा, बल्कि दरभंगा में पर्यटन को भी बढावा मिलेगा।